अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने संकेत दिया है कि वे भारत से आयात होने वाले चावल सहित कई कृषि उत्पादों पर नए टैरिफ लगाने पर विचार कर रहे हैं। यह बयान उस समय आया है जब भारत-अमेरिका के बीच लंबे समय से अटकी ट्रेड डील को फिर से आगे बढ़ाने की कोशिश चल रही है। अमेरिकी प्रशासन का दावा है कि भारत और कुछ अन्य देश सस्ते कृषि उत्पाद अमेरिकी बाजार में भेज रहे हैं, जिससे वहां के स्थानीय किसानों को आर्थिक नुकसान हो रहा है। ऐसे में यह कदम भारत के लिए विशेष रूप से चिंता का विषय है क्योंकि अमेरिकी बाजार भारतीय चावल, मसालों और अन्य कृषि उत्पादों के लिए बड़ा आयातक रहा है।
कृषि आयात विवाद: ट्रेड डील की सबसे बड़ी रुकावट
भारत और अमेरिका के बीच चल रही व्यापार वार्ता पिछले कई महीनों से ठप पड़ी है। इसका सबसे बड़ा कारण कृषि और खाद्य आयात से जुड़े विवाद हैं। अमेरिका चाहता है कि भारत अपने बाजार में डेयरी, मांस, सोया और अन्य विदेशी कृषि उत्पादों को अधिक जगह दे। लेकिन भारत का साफ कहना है कि इससे उसके स्थानीय किसानों, दुग्ध उत्पादकों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर सीधा असर पड़ेगा। इसी मुद्दे के चलते अमेरिका पहले ही भारत के कई उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ा चुका है। कई दौर की वार्ताओं के बावजूद दोनों देशों में सहमति नहीं बन सकी है।
ट्रंप की मांगें और भारत की आपत्तियां
1. GMO फसलों का प्रवेश
अमेरिका चाहता है कि भारत में सोयाबीन, कॉर्न और गेहूं जैसी फसलों में जेनेटिकली मॉडिफाइड (GMO) तकनीक को अनुमति दी जाए।
लेकिन भारतीय कृषि विशेषज्ञों और किसान संगठनों का तर्क है कि GMO फसलें:
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स्थानीय बीजों की प्रजातियां खत्म कर सकती हैं
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जैव विविधता को नुकसान पहुंचा सकती हैं
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और लंबे समय में स्वास्थ्य संबंधी जोखिम पैदा कर सकती हैं
यही कारण है कि भारत GMO पर अब तक सख्त रुख बनाए हुए है।
2. अमेरिकी डेयरी उत्पादों का आयात
अमेरिका भारत के विशाल डेयरी बाजार तक पहुंच चाहता है। लेकिन भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है और यहां करीब 30 मिलियन छोटे किसान डेयरी पर निर्भर हैं।
साथ ही धार्मिक और सांस्कृतिक आधार पर एक आपत्ति भी है—अमेरिका में गायों को ऐसे फीड दिए जाते हैं जिनमें पशु-आधारित एंजाइम शामिल होते हैं। भारत इसे "नॉन वेज मिल्क" मानता है और धार्मिक दृष्टि से इसे अस्वीकार्य मानता है।
3. कृषि टैरिफ कम करने की मांग
अमेरिका चाहता है कि भारत गेहूं, चावल, सोया, मक्का, सेब और अंगूर पर आयात शुल्क कम करे।
लेकिन भारत का तर्क है कि वह अपने किसानों को सस्ते विदेशी आयात से बचाने के लिए इन टैरिफ का इस्तेमाल करता है।
भारतीय कृषि बाजार अभी भी मौसम, फसल बीमा, MSP और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर अत्यधिक निर्भर है। ऐसे में विदेशी उत्पादों की बड़ी एंट्री किसानों को बाजार से बाहर कर सकती है।
भारत का कड़ा रुख: खाद्य सुरक्षा और किसान हित सर्वोपरि
भारत ने साफ कर दिया है कि वह विदेशी दबाव में खाद्य सुरक्षा नीतियों में बदलाव नहीं करेगा। सरकार प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत 80 करोड़ नागरिकों को मुफ्त राशन उपलब्ध कराती है।
भारत का दावा है कि पिछले 10 वर्षों में गरीबी दर 27% से घटकर 5% के करीब आ गई है—और इस सुधार का बड़ा श्रेय कृषि और खाद्य सुरक्षा नीतियों को जाता है। इस वजह से भारत विदेशी कृषि उत्पादों पर नियंत्रण और टैरिफ बनाए रखने के पक्ष में है।
आगे क्या?
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि अमेरिका भारतीय चावल व अन्य कृषि उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाता है, तो इससे:
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भारतीय निर्यातकों की आय पर असर पड़ेगा
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किसानों के लिए वैश्विक बाजार विकल्प कम होंगे
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दोनों देशों के बीच व्यापार तनाव फिर बढ़ सकता है
फिलहाल भारत और अमेरिका के बीच आगे की वार्ताओं पर नजरें टिकी हैं। उम्मीद की जा रही है कि दोनों देश राजनीतिक और आर्थिक दबावों के बीच किसी मध्य रास्ते पर पहुंचकर समझौता कर सकते हैं।