यूएस फेडरल रिज़र्व (US Fed) द्वारा हाल ही में ब्याज दरों में कटौती किए जाने के बाद यह उम्मीद जताई जा रही थी कि उभरती अर्थव्यवस्थाओं की करेंसी, खासकर भारतीय रुपये में राहत देखने को मिलेगी। लेकिन इसके ठीक उलट, भारतीय मुद्रा पर दबाव और बढ़ गया है। वैश्विक बाजारों में अनिश्चितताओं की बढ़ती रफ्तार, विदेशी निवेशकों की लगातार बिकवाली और आयातकों द्वारा डॉलर की बढ़ती मांग ने रुपये की कमजोरी को और गहरा कर दिया है। इसी कड़ी में गुरुवार को अंतरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में रुपये की शुरुआत भी कमजोर रही और यह 17 पैसे टूटकर प्रति डॉलर 90.11 के नए निचले स्तर तक फिसल गया। यह गिरावट पिछले बंद भाव 89.87 की तुलना में काफी ज्यादा है और दर्शाती है कि करेंसी मार्केट में डॉलर के मुकाबले रुपये की हालत लगातार कमजोर होती जा रही है।
डॉलर की मजबूती और ‘Risk-Off’ सेंटीमेंट
फॉरेक्स ट्रेडर्स के मुताबिक, निवेशकों के बीच रिस्क-ऑफ सेंटीमेंट तेजी से हावी है। दुनिया भर के निवेशक इस समय सुरक्षित विकल्पों की तलाश में हैं, और अमेरिकी डॉलर तथा सोने से ज्यादा सुरक्षित कोई विकल्प नजर नहीं आ रहा। इससे डॉलर की मांग लगातार मजबूत होती जा रही है, जिसका सीधा असर भारतीय रुपये पर पड़ रहा है।
घरेलू शेयर बाजार भी पिछले कुछ सत्रों से दबाव में है। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FII) ने बुधवार को ही भारतीय इक्विटी बाजारों से 1,651.06 करोड़ रुपये की निकासी की। इतनी बड़ी बिकवाली स्थानीय मुद्रा के लिए बहुत नकारात्मक संकेत है, क्योंकि FII आउटफ्लो होने पर डॉलर की मांग और बढ़ जाती है और रुपया कमजोर होता जाता है।
कमजोर शुरुआत, नई गिरावट
गुरुवार को जब मुद्रा बाजार खुला, तो रुपये ने 89.95 पर कारोबार शुरू किया। लेकिन शुरुआती घंटों में ही डॉलर की मांग बढ़ने लगी और रुपया तेजी से फिसलकर 90.11 के स्तर तक पहुंच गया। इससे साफ संकेत मिलता है कि बाजार में डॉलर की आपूर्ति सीमित है और मांग ज्यादा, जिसके कारण रुपये पर दबाव बना हुआ है।
इस बीच डॉलर इंडेक्स—जो छह प्रमुख वैश्विक मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की मजबूती को मापता है—0.15% गिरकर 98.63 पर आ गया। सामान्य परिस्थितियों में डॉलर इंडेक्स में गिरावट रुपये के लिए सकारात्मक मानी जाती है, लेकिन इस बार इसका कोई असर देखने को नहीं मिला।
घरेलू शेयर बाजार में गुरुवार को शुरुआती बढ़त जरूर दिखी।
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BSE Sensex: 80.15 अंक ऊपर, 84,471.42
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NSE Nifty 50: 34.40 अंक ऊपर, 25,792.40
लेकिन इक्विटी मार्केट की यह मजबूती रुपये को सहारा नहीं दे सकी, क्योंकि विदेशी निवेशकों की बिकवाली अब भी जारी है।
कच्चे तेल के दाम स्थिर, फिर भी राहत नहीं
अंतरराष्ट्रीय बाजार में ब्रेंट क्रूड 0.22% चढ़कर 62.35 डॉलर प्रति बैरल पर ट्रेड कर रहा था। आमतौर पर तेल की कीमतों में स्थिरता या गिरावट भारत के लिए राहत की बात होती है, क्योंकि देश के आयात बिल पर सीधा असर पड़ता है। लेकिन इस समय वैश्विक अस्थिरता और निवेशकों की सतर्कता इतनी अधिक है कि कच्चे तेल की सकारात्मकता भी रुपये की मदद नहीं कर पा रही।
आगे क्या होगा रुपये का?
बाजार जानकारों का कहना है कि आगामी दिनों में रुपये की दिशा काफी हद तक अमेरिका-भारत व्यापार वार्ता, विदेशी निवेश प्रवाह और वैश्विक आर्थिक संकेतों पर निर्भर करेगी। यदि व्यापार वार्ता से अच्छे संकेत मिलते हैं और FII बिकवाली कम होती है, तो रुपये में कुछ सुधार संभव है। लेकिन फिलहाल—
इन तीनों कारणों से भारतीय मुद्रा पर दबाव बना हुआ है और निकट भविष्य में इससे राहत मिलने की संभावना कम है।